प्राचीन व पौराणिक ग्रन्थों वर्णित आग्रेय ही अग्रवंश का उद्गम स्थान है, जो आज अग्रोहा के नाम से प्रख्यात है। देश की राजधानी दिल्ली से १९० और हरियाणा के हिसार जनपद से २० किलोमीटर की दूरी पर महाराजा अग्रसेन राष्ट्रीय मार्ग क्रमांक - १० हिसार - सिरसा बस मार्ग के किनारे एक खेड़े के रूप में विद्यमान है। अग्रोहा जो कभी महामानव महाराजा अग्रसेन के राज्य की राजधानी हुआ करती थी, वह पावन धरा आज एक नगर के रूप में स्थित है जहाँ लगभग 500 परिवारों की आबादी है । इसके निकट ही प्राचीन राजधानी आग्रेय (अग्रोहा) के अवशेष थेह के रूप में ६५० एकड जमीन में व्याप्त हैं। जो इस महान समुदाय औरअग्रोहा नगर का गौरवशाली इतिहास को दर्शाता है।
अग्रोहा धाम |
दादा अग्रसेन का राज्य अग्रोहा की सीमा इतिहासकारों ने उत्तर में हिमालय पर्वत, पंजाब की नदियाँ, दक्षिण और पूरब में गंगा नदी, तथा पश्चिम दिशा में यमुना से लेकर मारवाड़ तक पसरा हुआ बताया है।
निम्न श्लोक महाभारत के वनपर्व में वर्णित है, जो अग्रोहा को उल्लेखित करता है।
भद्रान रोहितकांशचैव आग्रेयान मालवानपि। गणान् सर्वान् विनिर्जित्य नीतिकृत प्रहसन्निव।। (महाभारत, वनपर्व २५५-२०)
इतिहासकारों की माने तो आग्रेय (अग्रोहा) की मौजूदगी महाभारत युग में था। उपर्युक्त श्लोक में जिस आग्रेहगण का वर्णन प्राप्त होता है वह निसंदेह रूप से अग्रोहा ही था। उस काल के अग्रोहा के मुख्यनगरों में गौड़ग्राम अथवा गुरुग्राम (आज का गुडगाँव), हाँसी, हिसारी देश (आज का हिसार), लवकोट (आज का लाहौर), पुण्यपतन (आज का पानीपत), महाराष्ट्र (मेरठ), रोहितास (आज का रोहतक), करनाल, नगरकोट, (आज का कोटकांगडा), विलासपुर, मण्डी, जींद, सफिदौ, नारिनवल ( आज का नारनौल) इत्यादि नगर आते थे।
अग्रोहा के प्राचीन खँडहर एवं अवशेष |
वर्ष १९३८ में हुई अग्रोहा के उत्खनन ने इतिहास के कई दबे हुए तथ्यों को उजागर कर दिया। उत्खनन में बर्तन, मुद्राएँ, प्रतिमाये प्राप्त हुई हैं । सिक्कों पर " अगोंदक अगाच्च जनपद " अंकित (लिखा हुआ) है तथा सिक्के की दूसरी तरफ वृषभ अथवा वेदिका की आकृति गढ़ी गई है। मिट्टी से निर्मित बर्तन, ईंटों के बने मकान, जल निकासन की पूर्ण व्यवस्था के लिए नालियां बनी मिली है । सरकारी खुदाई ने यह प्रमाणित कर दिया है कि अपने काल में अग्रोहा एक वैभवशाली, संपन्न राज्य था।