अग्रवाल शब्द की उत्पति के सम्बन्ध में अलग-अलग मतकारों के अलग-अलग मत हैं। अग्रोहा के रहिवासी होने के कारण तथा कालांतर में भिन्न-भिन्न स्थानों पर जाने अथवा पलायन पर इन्हें अग्रोहा वाले के नाम से संबोधित जाने लगा जो शब्द आगे चलकर अग्रवाल बन गया। अन्य मन्तव्य के मुताबित अग्रसेन, अग्रोहा अग्रवाल सभी में अग्र शब्द की प्रधानता है जिसका तात्पर्य होता है अग्रणी। इस अग्र शब्द से हमेशा आगे रहने वाली जाति के लोग अग्रवाल कहलाये, जिसका मतलब होता है हमेशा आगे रहने वाले। अग्रवंश की प्रत्येक शाखा जन्म से वैश्य नही थी। वें अपने गुण और कर्म के आधार पर वैश्य कहलाते है।
पश्चिम बंगाल व पंजाब मे सेसे ही अग्रहरि सिखो द्वारा गुरूद्वारा भी संचालित किए जाते हैं। महाजन: चूँकि अग्रवाल एवं अग्रहरि जाति के लोगों का मुख्य व्यवसाय दुकान या व्यापार ही था, जो कि छोटे-छोटे कस्बों या गाँवों मे उनके द्वारा संचालित की जाती थी। गाँवो के लोगों में इन दुकानदारों के प्रति काफी आदर एवं इज्जत थी तथा वे उन्हें 'महाजन' कह कर संबोधित करते थे। धीरे-धीरे इन दुकानदारों ने अपना उपनाम 'महाजन' रखना प्रारंभ कर दिया। साह एवं शाह: शाह का अर्थ बड़ा, महान साहूकार, बादशाह होता है। देश के अने भागों मे वैश्यों के लिए यह प्रबोधन प्रयुक्त होता है। शायद इसी कारण साहूकारी का काम करने वाले अग्र बंधूओं ने अपने नाम के साथ शाह अथवा साह लगाना प्रारंभ किया हो। सेठ या श्रेष्ठा: अग्रवाल तथा अग्रहरि वैश्य लोग अपने नाम के आगे या पीछे 'सेठ' उपनाम लगाते है, जैसे सेठ तीरथ प्रसाद अग्रहरि, सेठ राम अवतार गुप्त। सेठ उपमा समाज के महत्वपूर्ण व्यक्तियों को प्राप्त होती थी।
बनिया : जो सभी कार्यों को बनाने की क्षमता रखता हो। जो सब का बन सकता और सब को अपना बना सकता हो।
वणिक : वणज व्यापार करने के कारण।
वैश्य : प्रत्येक क्षेत्र में प्रवेश के कारण, गतिशील होने के कारण।
अग्रवाल: जो सर्वदा सब कार्यों में अग्रणी रहे।
गुप्त या गुप्ता: अग्रवालो एवं अग्रहरियो मे अपने नाम के साथ गुप्त या गुप्ता लिखने वालों की संख्या सर्वाधिक है। पासकर संहिता के अनुसार 'गुप्त' उपाधि का प्रयोग वैश्य वर्ण के लिए होता है।
"गुप्तोतिवैश्यस्य" (17.4) यह उपाधि का प्रयोग वैश्यों की प्रायः घटक नाम के साथ लगाते है। विष्णु पुराण के श्लोक (3-10-9) के अनुसार-
शर्मादेवस्य, विप्रस्य, वर्मात्राताचभूभज्ञर्नः। भूमिगुप्तश्च वैश्यस्यवास शुद्रस्यकारपेतं।
प्रारंभिक काल में अग्रवंशजो की मुख्य आजीविका कृषि, पशुपालन तथा व्यापार होता था। लेकिन बाद में वाणिज्य की तरफ अधिक झुकाव होने के वजह इस जाति का मुख्य व्यवसाय व्यापार हो गया। अग्रवाल एवं अग्रहरि अग्रकुल वंश के उपनाम मुगलो आतंक से त्रसित अग्रसेन महाराज के वंशज धीरे-धीर देश के विभिन्न भागों तथा निकटवर्ती अन्य देशों भी बस गए। ये सभी ने विभिन्न स्थानों के आधार पर अपने उपनाम रख लिए। वर्मा: बर्मा मे निवास करने वालों ने उपवास "वर्मा" रख लिया। आज भी बिहार के छपरा जिला मे सारण के पास स्थित दीघवारा बस्ती के अग्रहरि बंधु अपने नाम के साथ वर्मा लगाते है। सिंह: कुछ अग्रहरि परिवार पंजाब में बस गए और उन्होंने सिख धर्म अपना लिया, वे "अग्रहरि सिख" कहलाए, ठीक उसी प्रकार जैन धर्म अपनाने वाले अग्रबंधू "अग्रवाल जैन" हो गए। ऐसे अग्रहरियों ने अपने नाम के साथ 'सिंह' उपनाम रखना प्रारंभ कर दिया, जैस दीपक सिंह अग्रहरि, शमशेर सिंह अग्रहरि इत्यादि। ऐसे सिंह नामधारी अग्रहरि आज जमशेदपुर, सासाराम, औरंगाबाद, पटना, कलकत्ता, बनारस, मिर्जापुर, बलिया, प्रतापगढ़ आदि मे निवास कर रहे हैं।
पश्चिम बंगाल व पंजाब मे सेसे ही अग्रहरि सिखो द्वारा गुरूद्वारा भी संचालित किए जाते हैं। महाजन: चूँकि अग्रवाल एवं अग्रहरि जाति के लोगों का मुख्य व्यवसाय दुकान या व्यापार ही था, जो कि छोटे-छोटे कस्बों या गाँवों मे उनके द्वारा संचालित की जाती थी। गाँवो के लोगों में इन दुकानदारों के प्रति काफी आदर एवं इज्जत थी तथा वे उन्हें 'महाजन' कह कर संबोधित करते थे। धीरे-धीरे इन दुकानदारों ने अपना उपनाम 'महाजन' रखना प्रारंभ कर दिया। साह एवं शाह: शाह का अर्थ बड़ा, महान साहूकार, बादशाह होता है। देश के अने भागों मे वैश्यों के लिए यह प्रबोधन प्रयुक्त होता है। शायद इसी कारण साहूकारी का काम करने वाले अग्र बंधूओं ने अपने नाम के साथ शाह अथवा साह लगाना प्रारंभ किया हो। सेठ या श्रेष्ठा: अग्रवाल तथा अग्रहरि वैश्य लोग अपने नाम के आगे या पीछे 'सेठ' उपनाम लगाते है, जैसे सेठ तीरथ प्रसाद अग्रहरि, सेठ राम अवतार गुप्त। सेठ उपमा समाज के महत्वपूर्ण व्यक्तियों को प्राप्त होती थी।
बनिया : जो सभी कार्यों को बनाने की क्षमता रखता हो। जो सब का बन सकता और सब को अपना बना सकता हो।
वणिक : वणज व्यापार करने के कारण।
वैश्य : प्रत्येक क्षेत्र में प्रवेश के कारण, गतिशील होने के कारण।
अग्रवाल: जो सर्वदा सब कार्यों में अग्रणी रहे।
गुप्त या गुप्ता: अग्रवालो एवं अग्रहरियो मे अपने नाम के साथ गुप्त या गुप्ता लिखने वालों की संख्या सर्वाधिक है। पासकर संहिता के अनुसार 'गुप्त' उपाधि का प्रयोग वैश्य वर्ण के लिए होता है।
"गुप्तोतिवैश्यस्य" (17.4) यह उपाधि का प्रयोग वैश्यों की प्रायः घटक नाम के साथ लगाते है। विष्णु पुराण के श्लोक (3-10-9) के अनुसार-
शर्मादेवस्य, विप्रस्य, वर्मात्राताचभूभज्ञर्नः। भूमिगुप्तश्च वैश्यस्यवास शुद्रस्यकारपेतं।
अर्थात् ब्राह्मण के नाम के अंत में 'शर्मा', क्षत्रिय के अंत मे 'वर्मा', वैश्यों के अंत मे 'गुप्त' और शुद्रों के नाम के अंत मे 'दास' लगे। इसी कारण अग्र बंधुओ ने भी अपने नाम के साथ वैश्य होने के कारण 'गुप्त' लिखते थे जो अंग्रेजी मे 'गुप्ता' हो गया। अग्रसेन महाराज के वंशज धर्म परायण, शाकाहारी और अपने ईष्ट देव भगवान में इनका अटूट विश्वास होता है। पूजा पाठ इनके दैनिक जीवन का अंग है। कुलदेवी माता महालक्ष्मी के उपासक और दान व कर्तव्य परायण होते हैं। कर्म में इनका विश्वास होता है। अग्रावालों में उन्नत संतति हो इस सिद्धांत को ध्यान में रख कर आदि काल से ही सह गोत्रीय विवाह निषेध है।
परिवारों के उपनाम उपरोक्त के अलावा अग्रवाल और अग्रहरि वैश्य समुदाय के लोग अपने नाम के साथ अपने परिवारों के उपनमो का भी प्रयोग करते है जैसे पौद्दार, जालान, सिंघानिया, सुरेका, पित्ती, बुबना, मोदी, सुल्तानिया, बजाज, हरलालका, खेतान, सेक्सरियाआदि। इलाहाबाद एवं प्रतापगढ़ के कुछ अग्रहरि बन्धुओ द्वारा भी मोदी उपनाम प्रयोग किया जाता है। अग्रवंश के प्रत्येक सदस्य में महाराजा अग्रसेन का समाजवाद रग-रग में प्रवाहित हो रहा है। इसी कारण से हर अग्रवंशज उदार, निष्ठावान, कर्मठ व्यक्ति के रूप में अपनी भूमिका निभाता रहा है। " सादा जीवन उच्च विचार " वाली कहावत हमेशा उस पर चरितार्थ रही है। जो भी उनके पास बचता रहा है उसे उदारतापूर्वक पर हित के लए अर्पित करते रहते हैं
परिवारों के उपनाम उपरोक्त के अलावा अग्रवाल और अग्रहरि वैश्य समुदाय के लोग अपने नाम के साथ अपने परिवारों के उपनमो का भी प्रयोग करते है जैसे पौद्दार, जालान, सिंघानिया, सुरेका, पित्ती, बुबना, मोदी, सुल्तानिया, बजाज, हरलालका, खेतान, सेक्सरियाआदि। इलाहाबाद एवं प्रतापगढ़ के कुछ अग्रहरि बन्धुओ द्वारा भी मोदी उपनाम प्रयोग किया जाता है। अग्रवंश के प्रत्येक सदस्य में महाराजा अग्रसेन का समाजवाद रग-रग में प्रवाहित हो रहा है। इसी कारण से हर अग्रवंशज उदार, निष्ठावान, कर्मठ व्यक्ति के रूप में अपनी भूमिका निभाता रहा है। " सादा जीवन उच्च विचार " वाली कहावत हमेशा उस पर चरितार्थ रही है। जो भी उनके पास बचता रहा है उसे उदारतापूर्वक पर हित के लए अर्पित करते रहते हैं